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Friday, November 5, 2010

!! Happy Diwali !!


A very very happy and prosperous Diwali to everyone. May peace and joy always be with you.. may Goddess bless you with health and wealth.

Here is a blog link...very nice Deepawali Dohe are here.. you must read.  :-)

Monday, October 25, 2010

सपनें..!! - 2


आज मेरी आँखों में नींद है पर मन में नहीं,
कुछ ऐसे ख़्यालों को बुन लिया है मैंने जिन्हें
कागज़ पर उतारने का मज़ा आ रहा है;
इसी आनंद की अनुभूति रोक लेती है
बिस्तर पर गिर जाने और आँखे मूँद लेने से,
प्यारी नींद लेने से और सपनें देखने से,
क्योंकि..
जागती आँखों के सपनें, सोई आँखों के सपनों से
अधिक प्यारे, ख़ूबसूरत और यादगार होते है;
बढ़ाते है उम्मीद और ख़ुशी,
और बनते है जीने का सहारा !! :-)

Image coustesy for both poems (सपने..!! - 1 सपनें..!! - 2) - Google Search.

सपने..!! - 1


काली अँधेरी रातों को भी काली करता है कोई,
सारी रात जागकर कविता करता है कोई,
किताबे पढता है, कहानियां गढ़ता है,
और इन सब से ख़ास..
कुछ सपने बुनता है,
संजोता है, सहेजता है,
और बनता है योजनाएँ!
फिर प्यार हो जाता है सपनों की कहानियों से,
और एक दिन निश्चय कर लेता है..
ठीक है,
आज नहीं तो कल सही,
सारी ज़िन्दगी है अभी,
जिंदा रहूँगा जब तक,
याद रखूँगा सपना तब तक,
पूरा करूँगा एक दिन ज़रूर..
पूरा नहीं तो अधुरा सही,
आज नहीं तो कल सही!!

Saturday, September 18, 2010

Just Listen This Fruity Voice




    You may not read the faces,
    You may not hear the hearts,
    But when I say a few words,
    Just say..
    These are the chirping birds,
I like to hear!
The rhyming words,
I like to sing!
The sparkling river,
I like to wear!
                   
                    God's wishing prayers,
                    I like chanting!
                    The loving cares,
                    I like to follow!
                    My beloved's voice,
                    I love to love..!













Sunday, September 5, 2010

No Religion Bar

   Today I came to read a news and couldn't stop myself from sharing it. The news is about peace talks with Maoists. But I am not talking about it. I am talking about what Swami Agnivesh has said while addressing the religious congress. The news says,


   'Agnivesh said the Union Government must ensure that information on religion or caste is not recorded in school or academic registers as religion divides people. 

"A child should have no religion upto the age of 18. The government must ensure that there should not be any claims for religion or caste in school register or academic register," he told a plenary session on 'Role of Religion in Promoting Human Rights' as part of the ongoing 33rd World Congress here.

"One should have the freedom to choose any religion after the age of 18," he said.

He advised students to "read all scriptures and know all religions".

"There is need to fight against injustice and social evils like gender inequality, female foeticide and bride burning," he said.'

    I found the suggestion of not having any religious record of children under the age of 18 very interesting and important. This will cause the government to find any other appropriate way to judge the real poor and rich people which makes it firm that the monetary help in the form of scholarships etc. goes in the right and deserving hands.

   What do you people think about it?

Tuesday, August 24, 2010

मेरा भैया

अब जब ब्लॉग्गिंग स्टार्ट कर दी है और सभी की विशेष अवसरों पर लिखी गयी पोस्ट्स पढ़ती हूँ तो आज मेरा भी मन किया कि रक्षाबंधन के इस सुन्दर अवसर पर मैं भी अपने भाई के लिए कुछ लिखूं और आप सब के साथ उसे बांटू. तो पहले अपने भाई के बारें में बता दूं. ये छोटा सा बच्चा दिसम्बर में नौ साल का हो जायेगा और बच्चो के लिए प्रयोग किये जाने बाले सभी मासूम, भोला, नटखट, शरारती, जिद्दी, बुद्धू आदि विशेषण उसके लिए उपयुक्त है. परन्तु आज के आधुनिक युग के अति चतुर बच्चों कि तुलना में ये थोड़ा सा कम शरारती, कम चतुर और कम जिद्दी( यदि आप इसे प्यार से समझा सकें तो अन्यथा डांट से ये रुआंसा और बहुत ही मासूम हो जाता है और आपके दिल पिंघल जायेगा), थोड़ा अधिक समझदार और भावुक ( जो कभी कभी मुझे लगता है इसे नहीं होना चाहिए ) है.
लेकिन यदि मेरे भाई कि आधुनिकता कि बात करें तो इसकी तो हद ही है. आपने पिता के लिए प्रयुक्त होने वाले देसी शब्द 'बापू' से लेकर हिंदी शब्द 'पिताजी' फिर अंग्रेजी शब्द 'पापा', 'डेडी', 'डैड' और फिर डेविड धवन व उनके ही जैसे कुछ अन्य निर्देशकों की  फिल्मों में प्रयुक्त इन शब्दों से बिगड़े हुए व भद्दे से लगने वाले शब्दों 'दैडा', 'पॉप', 'पॉप्स'  आदि को तो सुना ही होगा. परन्तु मेरे अति आधुनिक भाई ने 'पापा' शब्द को बिगड़ कर 'पप्पू' ही कर दिया. मैं अचम्भे में थी जब उसने मुझसे आकर पूछा था कि ' पप्पू कहाँ है?' और मैं बहुत देर तक हँसी थी जब मुझे समझ आया था कि ये पप्पू है कौन. परन्तु शुक्र है कि वो जल्दी ही इसे भूल गया और इस तरह अलग और उलटे-पुल्टे नाम देना और भूल जाना इन महाशय की आदत है.

इस आठ साल के महान बच्चे का अपने रूप एवं साज-सज्जा की तरफ भी विशेष ध्यान है. नहाने के बाद कम से कम आधा घंटा इन्हें सजने संवरने में लगता है. इन्हें अपने सर में ख़ास ठंडा ठंडा कूल कूल नवरत्न तेल व बॉडी पर तेल, पाउडर लगाना ही है. फिर नए कपड़े पहनने है, शर्ट को निक्कर में दबा कर ही पहनना है. बैल्ट के बिना तो शो ही नहीं आती है. चहरे पर क्रीम भी लगानी है और बाल भी सैट करने है जो खुद से कभी ठीक से नहीं बना पाते है. इन्हें पॉकेट पर्स, और कलाई घड़ी का ख़ास शौक है. और हाँ शर्ट में पेन तो मैं भूल ही गयी. मतलब कि अपने आप में फुल फ़िल्मी हीरो और अपने बहनों के लिए कार्टून, मम्मी पापा का तो लाडला है ही.

 मेरे भाई को हमें चिढाने में और हम बहनों को  इसे चिढाने में कुछ ख़ास ही मज़ा आता है. पुराने फ़िल्मी स्वतंत्रता दिवस व रक्षाबंधन जैसे मौको पर  सम्बंधित हिंदी फ़िल्मी गीतों को सुनना मुझे हमेशा से ही अच्छा लगता है. ये शौक दूरदर्शन की 'रंगोली' से शुरू हुआ और रेडियो, अन्य टीवी चैनल्स और कंप्यूटर तक अब भी जारी है.यही गीत विशेष कर अक्ष बंधन पर मेरे भाई को चिढाने और उसके मज़े लेने में मेरी काफी मदद करते है. जिनमे कुछ ख़ास है:-
'फूलों का तारों का सबका कहना है'
'भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना, भैया मेरे छोटी बहन को न भूलना ( जहाँ ' छोटी' को बदल कर मैं 'बड़ी' कर देती हूँ )
'इसे समझो न रेशम का तार भैया'
इन गानों को सुनकर उसके चहरे पर आने वाले मिले जुले भावों को देखना हमें बड़ा अच्छा लगता है. ये एकदम गिरगिट की तरह रंग बदलते है. पहले तो वो ध्यान नहीं देगा, फिर अन्दर ही अंदर थोड़ा सा हंसेगा और शर्मायेगा, फिर शरारत पर उतर आएगा और मेरी आवाज़ गीत के बोल से बदल कर 'अच्छा अच्छा सॉरी सॉरी' में बदल जाती है.

ये सब सुनहरी यादें है और आप भी अपने भाई या बहन को कुछ ऐसे ही गीत सुनाकर देखिएगा, एक अलग ही अनुभव है. और हाँ याद रहे सिर्फ अपने ही भाई बहनों को.. ;)  


P.S.  -  इन तीनों गीतों के लिंक्स है:- 


चित्र साभार - गूगल 

Sunday, August 1, 2010

इंतज़ार की घड़ियाँ


देख कर हमें वो प्यार से थे मुस्कुराए,
ये वहम था हमारा या उनकी अदाएँ!!

खुशबु से महकी थी रंगीन बगिया,
फूल ही थे यें या थी भवरों की सदाएँ!!

आह! ये कैसी हुई आहट!
वो आ गए है या ये उनके आने की है चाहत!!

आया है सीली सी हवा का झोंका,
बरसा है कहीं बादल या है ये आंसू भरी दुआएँ!!

Image courtesy - Image is a result of googling.

Monday, July 12, 2010

फूल,तितलियाँ,परियाँ और इन्द्रधनुष

आज फिर से इस मन ने कुछ कहा,
क्यों न किया जाए कुछ प्यारा प्यारा, कुछ नया;
आसमाँ में खिलाएं फूल महकते हुए,
बादलों में तितलियाँ हो चहकते हुए;
फूलों के रंगों में खो जाए इन्द्रधनुष,
डर कर 'न हो जाए गुम ही!',
भाग आयें ज़मीं पर फैल जाएँ सब और;
रंगीं ज़मीं पर खड़े हो हम निहारें आसमाँ,
एक नया ही इन्द्रधनुष फूल बनाते हों वहां,
सात रंगों से भी ज्यादा रंग बिखरे हों जहाँ;
तितलियाँ वहां की परी हों और,
परियां ज़मीं की तितलियाँ !!





Thursday, June 10, 2010

लिखें कैसे!

लिखना चाहतें है कविता,
पर लिखें कैसे!
उलझी है विचारों की संहिता,
हम लिखें कैसे!

कशमकश में हूँ मैं,
किस पर लिखूं कविता?
तूफ़ान है दिल में कई,
क्या उन्हें उड़ेल दूँ!
कि खुशबुएँ हैं जो यहाँ,
उन्हें बयार दूँ!

ख़्वाबों को सजाऊँ,
कि यादों को बताऊँ;
हो रहे है जो जुदा,
मैं उनको बहलाऊँ;
जो प्यार है, जो सार है,
उस रब को मैं गाऊँ!

सब कुछ समाया है इसी में,
सब कुछ समाया है यहाँ;
तो रब ही है कविता,
रब को बताएँ कैसे!
लिखना चाहतें है कविता,
पर लिखें कैसे!

  

Sunday, May 23, 2010

WISH!!!!


Hariprasad - They have approved of your son as bridegroom for their daughter। Now go ahead and enquire what u want to know about them and also meet their girl. We have already settled the issue of money.

Ramesh - Yes, Hariprasad! we had but now we want six instead of four.

Hariprasad - But at first you had agreed for four. That's why they stepped forward in this direction.

Ramesh - yes, but now the thing is different.

Hariprasad - I think you are asking for more than enough. They wouldn't agree, still for once i will talk to them.

Hariprasad talked to the girl's father Mohan but he refused to give more dowry and the matter ended. Since Mohan and Ramesh had met once in the connection of the marriage of their kids, they were now acquaintances. They often saw each other . On his way, one day Ramesh met Mohan and both started talking. In the neighbourhood of Ramesh there lived a young boy Shiv for whom a suitable match was being searched. Ramesh considered Shiv and his family as inferior to his and their demand for money was also less. So he suggested to Mohan the boy as suitable match for his girl. Both of the families completed necessary enquiries and met each other for final settlement. Shiv and the girl liked each other and consented for the marriage. After the engagement, Shiv's family was all praise for his fiancee's beauty as well as qualities and thanked Ramesh for the match. The Big Day arrived. Ramesh's family also attended the marriage and felt proud that they have been the go between the two parties. But the moment they saw the bride, they were swept away by her shining beauty. Slightly smiling the immensely charming bride put garland in Shiv's neck and wedded him. On the other side stood Rohit, lamenting, " If only Papa had not demanded more money. Wish ! I had seen the girl first. And Wish ! I had the courage to tell my papa that not money but a beautiful and virtuous girl is more important to me." At the same time Ramesh's family went to congratulate the newly married couple and Shiv introduced his bride to his neighbouring friend Rohit. Rohit's face became white when the bride said "Nameste Bhaiya...".

P.S. - I pay regards to my teacher and friend Mrs. Maneesha Bansal to help me in translating it in english so beautifully. Originally I wrote it in hindi and wanted to post it in english too. Thanks google for the picture.

Wednesday, May 19, 2010

काश!!!



हरी प्रसाद - रमेश जी, आपका बेटा तो उन लोगों को पसंद है। अब आप उनके विषय में जो जानना चाहते हैं पता कर ले व लड़की भी देख लें। रुपये पैसे की बात तो हमारी पहले ही हो चुकी है।
रमेश - हाँ हरी प्रसाद जी, बात तो हो चुकी है परन्तु हम चार नहीं छह में रिश्ता करेंगे।
हरी प्रसाद - परन्तु पहले तो आप ही ने चार में हाँ कही थी, तभी तो उन्होंने आगे कदम बढाया है।
रमेश - हाँ, परन्तु अब बात और है।
हरी प्रसाद - मेरे विचार से आप अधिक मांग कर रहे है, वो इन्कार करेंगे, फिर भी मैं एक बार उनसे बात कर लूँगा।
हरी प्रसाद ने लड़की के पिता मोहन से बात की परन्तु उन्होंने अधिक धन देने से मना कर दिया और रिश्ता नहीं बना। चूँकि मोहन रिश्ते के सिलसिले में रमेश से एक बार मिल चुके थे इसलिए वो अब एकदूसरे को पहचानते थे और कुछ ही दूरी पर घर होने के कारण अक्सर मिल जाया करते थे। इसी तरह एक दिन रमेश कहीं जाते समय मोहन से मिले व रुक कर कुछ देर बातें करने लगे। रमेश के पड़ोस ही में एक लड़का शिव रहता था जिसके लिए रिश्ते की खोज की जा रही थी। शिव व उसके परिवार को रमेश अपने से थोड़ा कमतर मानते थे और इन लोगों की मांग भी कम थी इसलिए रमेश ने इस रिश्ते का जिक्र रमेश ने मोहन से किया। दोनों परिवारों ने एक दूसरे को देखा जाना, लड़का लड़की से मिला और रिश्ता पक्का हो गया। सगाई के बाद से ही लड़के का परिवार लड़की की सुन्दरता व गुणों की तारीफ़ करता और रमेश जी को आभार व्यक्त करता। विवाह के दिन रमेश का परिवार भी गर्व के साथ विवाह में शामिल हुआ। परन्तु दुल्हन को देख कर रमेश व उनके बेटे रोहित की आँखें खुली की खुली रह गयी। मंद मंद मुस्काती अत्यंत खुबसूरत दुल्हन दुल्हे शिव को वरमाला पहना रही थी और इधर रोहित अफ़सोस कर रहा था, " काश! पापा ने अधिक पैसों की मांग न की होती। काश! हमने पहले लड़की को देखा होता और काश! की मैंने पापा से कहा होता की मैं धन के आधार पर नहीं बल्कि सुन्दर व गुनी लड़की से शादी करूँगा।"
उसी समय रमेश का परिवार नवविवाहित जोड़े को बधाई देने के लिए गए और शिव ने दुल्हन को अपने पडोसी दोस्त रोहित से परिचित करवाया। रोहित का चेहरा उतर गया था जब दुल्हन ने कहा, "नमस्ते भैया ..."।

Saturday, May 8, 2010

गद गद हो गई


एक दिन अध्यापक ने सभी विद्यार्थियों को कहा - 'गद गद होना' इस मुहावरे का वाक्य बनाओ।
अध्यापक ने गोलु से पूछा तो उसने बताया -'सालों बाद बेटे को देखकर माँ गद गद हो गई'।
गोलु के नकलची मोलु ने पड़ते ही कहा, 'नहीं... !! बेटे को देखते ही माँ पैड़ियों में गद गद* हो गई।'
.
.
.
* गद से गिरना ( जोर से गिरना)
पीएस नोट - तस्वीर इन्टरनेट से ली गई एक क्लिप आर्ट है।

Thursday, May 6, 2010

चक्र




गर्मियों की भरी दोपहरी में,
आसमां में सूरज जब तमतमाया,
खुद भी जला, औरों को भी जलाया;
तारों से चमकने की होड़ में तो जीत गया वो,
पर किसी और को फूटी आँख ना सुहाया;
न किसी ने उसे देखा,
न ही कोई आसमां में देख पाया;
छा गया एक सूनापन आसमां में,
और जब टकराया ये सूनापन,
दिलों में भरी पीड़ा और सूनेपन से;
तो गिरने लगा सूरज,
टूटने लगा सारा दंभ और अभिमान;
रात भर के प्रायश्चित के बाद,
एक बार फिर सूरज जगमगाया,
नई ताजगी के साथ,
और ये चक्र दोहराता है बार बार।

पीएस. नोट - तस्वीर http://www.swpc.noaa.gov/primer/primer_graphics/Sun.pसे ली गई है।

Monday, May 3, 2010

I Miss You..

Here I am missing my adoring sister...




I don’t love to see you cry,
but I miss you most,
when it pains..

above is true but following is not lie too
that I miss you the same,
when it gains..

when the days are usual,
I miss u again,
coz I don’t wanna get bored alone.

Oh! I miss you at night with sleepless eyes,
when need you to talk for long,
lying on the bed along.

I miss you,
when I make a dish,
& need a food lover to taste and praise fulsomely..

When we are on an outing together
I miss you again to be with us,
to make the moments more adorable..

I miss you,
to laugh loudly along with our silly chit-chat,
& the stupid things we do together..

I miss you,
to have a fight & then again start talking,
with little frowning faces changing into smiling..

Oh! When I don’t miss you,
I miss you,
every day, every hour & every moment,
the most…

Thursday, April 22, 2010

Nisha (Night) - 2

Nisha for morning
Nisha for enjoyment of light
Nisha so you enjoy diwali
Nisha so you have hopes
With countless stars
It’s dark still bright
Silent but saying a lot
Sad but happy and smiling
Guilty but innocent
Coming in every twelve hours
to fight with artificial light
and exists because it’s nature n true
So it’s what it could and should be actually
So it’s Nisha and only Nisha
Sometimes dark and sometimes bright
Proving the simile of nature and life
  • .
  • .
p.s. - I wrote both of these 'Nisha' poems almost praising my name as i like it very much and don't like when many people says my parents didn't choose a good name for me as it means night that is black and has many negative meanings. I just wanted to tell those people with this thinking that everything in this world is good and has some beauty, the difference is just the way of thinking. How criticising makes you think and do something good. So please criticise these too and let me know how deep I am in water..

Wednesday, April 21, 2010

Nisha (Night)

A ray of hope, a ray of light
sometimes dark, sometimes bright
just like a good friend
though far, always with light
saying the sun to take rest
and rise again with its best
making the moon shining with more light
says stars just for you we are bright
morning comes saying
have a nice journey
and come soon for me as I for you
and it goes with long strides
evening.. comes, for its welcome
and then again
a ray of hope, a ray of light

ओ तेज ठंडी हवा

ओ तेज ठंडी हवा
खनखनाती है मेरी विंड चाईम
सुहाती है मुझे
आ थोड़ा और पास आ

ओ तेज ठंडी हवा
लाती है बूंदों भरे बादल
भिगाती है मुझे
आ थोड़ा और पास आ

ओ तेज ठंडी हवा
आती है धूल से भर कर
सताती है मुझे
रुक, थोड़ा ठहर जा

ओ तेज ठंडी हवा
गुनगुनाता है दूर कोई प्यार के गीत
सुनाती है मुझे
आ थोड़ा फिर पास आ
थोड़ा.. और पास आ