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Wednesday, May 19, 2010

काश!!!



हरी प्रसाद - रमेश जी, आपका बेटा तो उन लोगों को पसंद है। अब आप उनके विषय में जो जानना चाहते हैं पता कर ले व लड़की भी देख लें। रुपये पैसे की बात तो हमारी पहले ही हो चुकी है।
रमेश - हाँ हरी प्रसाद जी, बात तो हो चुकी है परन्तु हम चार नहीं छह में रिश्ता करेंगे।
हरी प्रसाद - परन्तु पहले तो आप ही ने चार में हाँ कही थी, तभी तो उन्होंने आगे कदम बढाया है।
रमेश - हाँ, परन्तु अब बात और है।
हरी प्रसाद - मेरे विचार से आप अधिक मांग कर रहे है, वो इन्कार करेंगे, फिर भी मैं एक बार उनसे बात कर लूँगा।
हरी प्रसाद ने लड़की के पिता मोहन से बात की परन्तु उन्होंने अधिक धन देने से मना कर दिया और रिश्ता नहीं बना। चूँकि मोहन रिश्ते के सिलसिले में रमेश से एक बार मिल चुके थे इसलिए वो अब एकदूसरे को पहचानते थे और कुछ ही दूरी पर घर होने के कारण अक्सर मिल जाया करते थे। इसी तरह एक दिन रमेश कहीं जाते समय मोहन से मिले व रुक कर कुछ देर बातें करने लगे। रमेश के पड़ोस ही में एक लड़का शिव रहता था जिसके लिए रिश्ते की खोज की जा रही थी। शिव व उसके परिवार को रमेश अपने से थोड़ा कमतर मानते थे और इन लोगों की मांग भी कम थी इसलिए रमेश ने इस रिश्ते का जिक्र रमेश ने मोहन से किया। दोनों परिवारों ने एक दूसरे को देखा जाना, लड़का लड़की से मिला और रिश्ता पक्का हो गया। सगाई के बाद से ही लड़के का परिवार लड़की की सुन्दरता व गुणों की तारीफ़ करता और रमेश जी को आभार व्यक्त करता। विवाह के दिन रमेश का परिवार भी गर्व के साथ विवाह में शामिल हुआ। परन्तु दुल्हन को देख कर रमेश व उनके बेटे रोहित की आँखें खुली की खुली रह गयी। मंद मंद मुस्काती अत्यंत खुबसूरत दुल्हन दुल्हे शिव को वरमाला पहना रही थी और इधर रोहित अफ़सोस कर रहा था, " काश! पापा ने अधिक पैसों की मांग न की होती। काश! हमने पहले लड़की को देखा होता और काश! की मैंने पापा से कहा होता की मैं धन के आधार पर नहीं बल्कि सुन्दर व गुनी लड़की से शादी करूँगा।"
उसी समय रमेश का परिवार नवविवाहित जोड़े को बधाई देने के लिए गए और शिव ने दुल्हन को अपने पडोसी दोस्त रोहित से परिचित करवाया। रोहित का चेहरा उतर गया था जब दुल्हन ने कहा, "नमस्ते भैया ..."।