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Thursday, May 6, 2010

चक्र




गर्मियों की भरी दोपहरी में,
आसमां में सूरज जब तमतमाया,
खुद भी जला, औरों को भी जलाया;
तारों से चमकने की होड़ में तो जीत गया वो,
पर किसी और को फूटी आँख ना सुहाया;
न किसी ने उसे देखा,
न ही कोई आसमां में देख पाया;
छा गया एक सूनापन आसमां में,
और जब टकराया ये सूनापन,
दिलों में भरी पीड़ा और सूनेपन से;
तो गिरने लगा सूरज,
टूटने लगा सारा दंभ और अभिमान;
रात भर के प्रायश्चित के बाद,
एक बार फिर सूरज जगमगाया,
नई ताजगी के साथ,
और ये चक्र दोहराता है बार बार।

पीएस. नोट - तस्वीर http://www.swpc.noaa.gov/primer/primer_graphics/Sun.pसे ली गई है।

3 comments:

Anamikaghatak said...

sundar kavya rachana

Nisha said...

शुक्रिया एना. आपका ब्लॉग भी पढ़ा मैंने.. बहुत अच्छी लेखिका है आप.

संजय भास्‍कर said...

मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है