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Tuesday, August 24, 2010

मेरा भैया

अब जब ब्लॉग्गिंग स्टार्ट कर दी है और सभी की विशेष अवसरों पर लिखी गयी पोस्ट्स पढ़ती हूँ तो आज मेरा भी मन किया कि रक्षाबंधन के इस सुन्दर अवसर पर मैं भी अपने भाई के लिए कुछ लिखूं और आप सब के साथ उसे बांटू. तो पहले अपने भाई के बारें में बता दूं. ये छोटा सा बच्चा दिसम्बर में नौ साल का हो जायेगा और बच्चो के लिए प्रयोग किये जाने बाले सभी मासूम, भोला, नटखट, शरारती, जिद्दी, बुद्धू आदि विशेषण उसके लिए उपयुक्त है. परन्तु आज के आधुनिक युग के अति चतुर बच्चों कि तुलना में ये थोड़ा सा कम शरारती, कम चतुर और कम जिद्दी( यदि आप इसे प्यार से समझा सकें तो अन्यथा डांट से ये रुआंसा और बहुत ही मासूम हो जाता है और आपके दिल पिंघल जायेगा), थोड़ा अधिक समझदार और भावुक ( जो कभी कभी मुझे लगता है इसे नहीं होना चाहिए ) है.
लेकिन यदि मेरे भाई कि आधुनिकता कि बात करें तो इसकी तो हद ही है. आपने पिता के लिए प्रयुक्त होने वाले देसी शब्द 'बापू' से लेकर हिंदी शब्द 'पिताजी' फिर अंग्रेजी शब्द 'पापा', 'डेडी', 'डैड' और फिर डेविड धवन व उनके ही जैसे कुछ अन्य निर्देशकों की  फिल्मों में प्रयुक्त इन शब्दों से बिगड़े हुए व भद्दे से लगने वाले शब्दों 'दैडा', 'पॉप', 'पॉप्स'  आदि को तो सुना ही होगा. परन्तु मेरे अति आधुनिक भाई ने 'पापा' शब्द को बिगड़ कर 'पप्पू' ही कर दिया. मैं अचम्भे में थी जब उसने मुझसे आकर पूछा था कि ' पप्पू कहाँ है?' और मैं बहुत देर तक हँसी थी जब मुझे समझ आया था कि ये पप्पू है कौन. परन्तु शुक्र है कि वो जल्दी ही इसे भूल गया और इस तरह अलग और उलटे-पुल्टे नाम देना और भूल जाना इन महाशय की आदत है.

इस आठ साल के महान बच्चे का अपने रूप एवं साज-सज्जा की तरफ भी विशेष ध्यान है. नहाने के बाद कम से कम आधा घंटा इन्हें सजने संवरने में लगता है. इन्हें अपने सर में ख़ास ठंडा ठंडा कूल कूल नवरत्न तेल व बॉडी पर तेल, पाउडर लगाना ही है. फिर नए कपड़े पहनने है, शर्ट को निक्कर में दबा कर ही पहनना है. बैल्ट के बिना तो शो ही नहीं आती है. चहरे पर क्रीम भी लगानी है और बाल भी सैट करने है जो खुद से कभी ठीक से नहीं बना पाते है. इन्हें पॉकेट पर्स, और कलाई घड़ी का ख़ास शौक है. और हाँ शर्ट में पेन तो मैं भूल ही गयी. मतलब कि अपने आप में फुल फ़िल्मी हीरो और अपने बहनों के लिए कार्टून, मम्मी पापा का तो लाडला है ही.

 मेरे भाई को हमें चिढाने में और हम बहनों को  इसे चिढाने में कुछ ख़ास ही मज़ा आता है. पुराने फ़िल्मी स्वतंत्रता दिवस व रक्षाबंधन जैसे मौको पर  सम्बंधित हिंदी फ़िल्मी गीतों को सुनना मुझे हमेशा से ही अच्छा लगता है. ये शौक दूरदर्शन की 'रंगोली' से शुरू हुआ और रेडियो, अन्य टीवी चैनल्स और कंप्यूटर तक अब भी जारी है.यही गीत विशेष कर अक्ष बंधन पर मेरे भाई को चिढाने और उसके मज़े लेने में मेरी काफी मदद करते है. जिनमे कुछ ख़ास है:-
'फूलों का तारों का सबका कहना है'
'भैया मेरे राखी के बंधन को निभाना, भैया मेरे छोटी बहन को न भूलना ( जहाँ ' छोटी' को बदल कर मैं 'बड़ी' कर देती हूँ )
'इसे समझो न रेशम का तार भैया'
इन गानों को सुनकर उसके चहरे पर आने वाले मिले जुले भावों को देखना हमें बड़ा अच्छा लगता है. ये एकदम गिरगिट की तरह रंग बदलते है. पहले तो वो ध्यान नहीं देगा, फिर अन्दर ही अंदर थोड़ा सा हंसेगा और शर्मायेगा, फिर शरारत पर उतर आएगा और मेरी आवाज़ गीत के बोल से बदल कर 'अच्छा अच्छा सॉरी सॉरी' में बदल जाती है.

ये सब सुनहरी यादें है और आप भी अपने भाई या बहन को कुछ ऐसे ही गीत सुनाकर देखिएगा, एक अलग ही अनुभव है. और हाँ याद रहे सिर्फ अपने ही भाई बहनों को.. ;)  


P.S.  -  इन तीनों गीतों के लिंक्स है:- 


चित्र साभार - गूगल 

Sunday, August 1, 2010

इंतज़ार की घड़ियाँ


देख कर हमें वो प्यार से थे मुस्कुराए,
ये वहम था हमारा या उनकी अदाएँ!!

खुशबु से महकी थी रंगीन बगिया,
फूल ही थे यें या थी भवरों की सदाएँ!!

आह! ये कैसी हुई आहट!
वो आ गए है या ये उनके आने की है चाहत!!

आया है सीली सी हवा का झोंका,
बरसा है कहीं बादल या है ये आंसू भरी दुआएँ!!

Image courtesy - Image is a result of googling.