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Monday, July 12, 2010

फूल,तितलियाँ,परियाँ और इन्द्रधनुष

आज फिर से इस मन ने कुछ कहा,
क्यों न किया जाए कुछ प्यारा प्यारा, कुछ नया;
आसमाँ में खिलाएं फूल महकते हुए,
बादलों में तितलियाँ हो चहकते हुए;
फूलों के रंगों में खो जाए इन्द्रधनुष,
डर कर 'न हो जाए गुम ही!',
भाग आयें ज़मीं पर फैल जाएँ सब और;
रंगीं ज़मीं पर खड़े हो हम निहारें आसमाँ,
एक नया ही इन्द्रधनुष फूल बनाते हों वहां,
सात रंगों से भी ज्यादा रंग बिखरे हों जहाँ;
तितलियाँ वहां की परी हों और,
परियां ज़मीं की तितलियाँ !!