“Books are everywhere; and always the same sense of adventure fills us. Second-hand books are wild books, homeless books; they have come together in vast flocks of variegated feather, and have a charm which the domesticated volumes of the library lack. Besides, in this random miscellaneous company we may rub against some complete stranger who will, with luck, turn into the best friend we have in the world.” ― Virginia Woolf, Street Haunting
Thursday, May 6, 2010
चक्र
गर्मियों की भरी दोपहरी में,
आसमां में सूरज जब तमतमाया,
खुद भी जला, औरों को भी जलाया;
तारों से चमकने की होड़ में तो जीत गया वो,
पर किसी और को फूटी आँख ना सुहाया;
न किसी ने उसे देखा,
न ही कोई आसमां में देख पाया;
छा गया एक सूनापन आसमां में,
और जब टकराया ये सूनापन,
दिलों में भरी पीड़ा और सूनेपन से;
तो गिरने लगा सूरज,
टूटने लगा सारा दंभ और अभिमान;
रात भर के प्रायश्चित के बाद,
एक बार फिर सूरज जगमगाया,
नई ताजगी के साथ,
और ये चक्र दोहराता है बार बार।
पीएस. नोट - तस्वीर http://www.swpc.noaa.gov/primer/primer_graphics/Sun.pसे ली गई है।
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3 comments:
sundar kavya rachana
शुक्रिया एना. आपका ब्लॉग भी पढ़ा मैंने.. बहुत अच्छी लेखिका है आप.
मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
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